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गुरुवार, 1 सितंबर 2011

अजीब होती है दोस्ती की दास्ताँ .


अजीब दास्ताँ होती है दोस्ती की .
लड़ना मिलने से भी ज्यादा अच्छा लगता है .
लड़ के मनाने वाले भी होते हैं.
तो कुछ को चिड़ाना अच्छा लगता है.
दोस्त के मुह से कुछ सुन्ने के लिए कभी कभी झुक जाना भी अच्छा लगता है.
सफ़र ट्रेन के हो या ज़िन्दगी का, ख़तम ही नहीं होती बातें.
फिर भी खामोश रह कर मुस्कुराना अच्छा लगता है.
दोस्तों मैं लगता है मिल गयी पूरी दुनिया,
बाकी सब भूल जाना अच्छा लगता है.
यारो हमेशा साथ रहना, तुम्हारा याराना अच्छा लगता है

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