पृष्ठ

मंगलवार, 21 जून 2011

जब कभी भी तेरी याद आती है हमें

जब कभी भी तेरी याद आती है हमें
बीती हर बात आज भी रुलाती है हमें

रोक ना पाऊ खुदको तेरे करीब आने से
तेरी आवाज़ तेरे पास

बुलाती है हमें



भूलाऊ कैसे वोह गुज़रे लम्हे

वोह मुलाकाते हर रात जगाती है हमें

बेरंग सा लगता है जब मुझे ये जहाँ

तेरी आँखे रंग सारे दिखाती है हमें

चाहा जब कभी कहीं दूर चले जाने को
किस्मत फ़िर उसी मोड़ पर ले आती है हमें

गुरुवार, 9 जून 2011

शाम से आँखों में नमी सी है.....


शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है

दफ़्न कर दो हमें कि साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है

वक़्त रहता नहीं कहीं छुपकर
इस की आदत भी आदमी सी है

कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी
है

रविवार, 5 जून 2011

तुम मां हो, बहन हो, बेटी हो, पत्नी भी

इस घर की चारदिवारी बेरंग थी
तुम्हारे आने से पहले
तुम आईं तो रंग आया, रौनक आई
तुम सच एक कड़ी ही तो हो
घर बनाने वाली, नहीं घर जोड़ने वाली
सच, तुम पेंटिंग हो, कविता हो, संगीत हो
जिंदगी को सुंदरता का वर देने वाली देवी
तुम हर दुखियारे की मीत हो
ऐ ईश्वर की अनमोल रचना
तुम मां हो, बहन हो, बेटी हो, पत्नी भी
और किसी पागल प्रेमी की प्रीत हो
ओ ममता की मूरत खामोश न रह, बोल
अपने दिल की गांठें तो खोल
गर तू है बुत तो बुतपरस्त भी हैं
न लगा अपनी हैसियत का मोल
तू हंस, के तू अब आजाद है
आज इस हंसी पर ही जहां आबाद है