वह खून कहो किस मतलब काजिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब काआ सके देश के काम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,वह खून नहीं, पानी है!
जिस दिन सुभाष ने बर्मा मेंमॉंगी उनसे कुरबानी थी।
तुम बहुत जी चुके जग में,लेकिन आगे मरना होगा।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों केफूलों से गूँथी जाएगी।
यह शीश कटाने का सौदानंगे सर झेला जाता है"
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठादमकी उनकी रक्तिम काया!
इसके बदले भारत कीआज़ादी तुम मुझसे लेना।"
स्वर इनकलाब के नारों केकोसों तक छाए जाते थे।
रण में जाने को युवक खड़ेतैयार दिखाई देते थे।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉंआकर हस्ताक्षर करता है?
अपना तन-मन-धन-जन-जीवनमाता को अर्पण करना है।
इस पर तुमको अपने तन काकुछ उज्जवल रक्त गिराना है!
वह आगे आए जो अपने कोहिंदुस्तानी कहता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आएजो इसको हँसकर लेता हो!"
माता के चरणों में यह लो,हम अपना रक्त चढाते हैं!
चाकू-छुरी कटारियों से,वे अपना रक्त गिराते थे!
आज़ादी के परवाने परहस्ताक्षर करते जाते थे!
जब लिक्खा महा रणवीरों ने ख़ूँ से अपना इतिहास नया।
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